राहु का स्वरूप: : राहु की चार भुजाओं में से तीन में तलवार, कवच, त्रिशूल हैं और चौथी भुजा वरमुद्रा में है। राहु की मूर्ति का स्वरूप ऐसा होना चाहिए।
विशेष- श्वेत चावलों की वेदी के पश्चिम-दक्षिण कोण पर राहु की स्थापना करनी चाहिए। काल को राहु का अधिदेव माना गया है। राहु को अजश्रृंगी नामक लता के फल का गूदा नैवेद्य के रूप में अर्पित करना चाहिए।
राहु ग्रह का मंत्र (Rahu Graha Mantra in Hindi):
ऊं नमो अर्हते भगवते श्रीमते नेमि तीर्थंकराय सर्वाण्हयक्ष कुष्मांडीयक्षी सहिताय |
ऊं आं क्रौं ह्रीं ह्र: राहुमहाग्रह मम दुष्टग्रह, रोग कष्ट निवारणं सर्व शान्तिं च कुरू कुरू हूं फट् || 18000 जाप्य ||
मध्यम मंत्र- ऊं ह्रीं क्लीं श्रीं हूं: राहुग्रहारिष्टनिवारक श्री नेमिनाथ जिनेन्द्राय नम: शान्तिं कुरू कुरू स्वाहा ||
18000 जाप्य ||लघु मंत्र- ऊं ह्रीं णमो लोए सव्वसाहुणं || 10000 जाप्य ||
तान्त्रिक मंत्र - ऊं भ्रां भ्रीं भ्रौं स: राहवे नम: || 18000 जाप्य ||