केतु का स्वरूप: : धूम्र वर्ण केतु की दो भुजाएं हैं जिनमें एक भुजा में गदा और दूसरी वरमुद्रा में है।विशेष- श्वेत चावलों की वेदी के पश्चिमोत्तर कोण पर केतु की स्थापना करनी चाहिए। चित्रगुप्त को केतु का अधिदेव माना जाता है। केतु को विचित्र रंगवाले चावलों का का नैवेद्य अर्पित करना चाहिए।
केतु का मंत्र (Ketu Graha Mantra in Hindi):
ऊं नमो अर्हते भगवते श्रीमते पार्श्व तीर्थंकराय धरेन्द्रयक्ष पद्मावतीयक्षी सहिताय |
ऊं आं क्रों ह्रीं ह्र: केतुमहाग्रह मम दुष्टग्रह, रोग कष्टनिवारणं सर्व शान्तिं च कुरू कुरू हूं फट् || 7000 जाप्य ||
मध्यम मंत्र - ऊं ह्रीं क्लीं ऐं केतु अरिष्टनिवारक श्री मल्लिनाथ जिनेन्द्राय नम: शान्तिं कुरू कुरू स्वाहा || 7000 जाप्य ||
लघु मंत्र- ऊं ह्रीं णमो लोए सव्वसाहूणं || 10000 जाप्य ||
तान्त्रिक मंत्र- ऊं स्त्रां स्त्रीं स्त्रौं स: केतवे नम: || 17000 जाप्य ||