मंगल ग्रह का स्वरूप : चार भुजाधारी मंगल देव के तीन हाथों में खड्ग, ढाल, गदा तथा चौथा हाथ वरदमुद्रा में है, उनकी शरीर की कांति कनेर के पुष्प जैसी है। वह लाल रंग की पुष्पमाला और वस्त्र धारण करते हैं। मंगल की प्रतिमा का स्वरूप ऐसा ही होना चाहिए।
विशेष- श्वेत चावलों की वेदी के दक्षिण में मंगल देव की स्थापना करनी चाहिए। भविष्यपुराण के अनुसार मंगल के अधिदेव स्कन्द हैं। मंगल को गोझिया(गुजिया) का नैवेद्य अर्पित करना चाहिए।
मंगल देव का मंत्र (Mantra of Mangal Grah in Hindi): ऊं नमोअर्हते भगवते वासुपूज्य तीर्थंकराय षण्मुखयक्ष |
गांधरीयक्षी सहिताय ऊं आं क्रों ह्रीं ह्र: कुंज महाग्रह मम दुष्टग्रह,
रोग कष्ट निवारणं सर्व शान्तिं च कुरू कुरू हूं फट् || 11000 जाप्य ||
मध्यम यंत्र- ऊं आं क्रौं ह्रीं श्रीं क्लीं भौमारिष्ट निवारक श्री वासुपूज्य जिनेन्द्राय नम: शान्तिं कुरू कुरू स्वाहा || 10000 स्वाहा ||
लघु मंत्र- ऊं ह्रीं णमो सिद्धाणं || 10000 जाप्य ||
तान्त्रिक मंत्र- ऊं क्रां क्रीं क्रौं स: भौमाय नम: || 10000 जाप्य ||